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मेरी मौत की असली वजह

मैंने कभी नही सोचा था की मैं कभी ऐसा कदम भी उठाऊंगा। जिन रस्सीयो से बचपन मे पेड़ो की डाली पर झूला बनाकर हम बहन और भाई झूला झूला करते थे, जिन रस्सीयो से मेरी माँ जंगल जा जाकर सूखी लकड़िया बांधकर लाया करती थी। जो रस्सीया हमारे गाय के लिए घास बांधकर लाने के लिए खास करके बूनवाकर लाया करते थे, उन तमाम यादो की रस्सा-कस्सी मेरे दिमाग़ मे तब आयी जब मेरी सांसे उसी रस्सी के जकड़न मे आकर उखड़ने लगी। मेरी हर सांस अब उस रस्सी के कसाव के हवाले थी, और मेरी उगलिया उसे ढीला करने की बेइंतहा कोशिश कर रही थी, पैर हवा मे ऐसे छटपटा  रहे थे जैसे जो काम हाथ की उंगलियां नही कर पा रही थी वो काम ये कर दिखाएंगे। कमरे का बंद दरवाजा और दूर दूर तक किसी इंसान के ना होने की खबर मुझे और उस रस्सी को थी। जिंदगी की अहमियत तो हमेशा देर से ही समझ आती है, और मौत से हर इंसान एक और मौका जरूर मांगता है जब तक जिन्दा हो, मौत के बाद जिंदगी की तमन्ना ही किसे रहती है। मुझे खुद को खुद ही बचाना था और ये काम मुझसे नही हो पा रहा था, खुद को सूली पर लटकाने से पहले मैंने ये नही सोचा की जिस परेशानी से मैं गुजर रहा हूँ मौत उसका हल कभी था ही नही, मरने के बाद सब ठीक हो जायेगा इस गलतफहमी के चलते मैं ये कदम उठा बैठा, लेकिन अब मुझे उसके और भी बहुत सारे रास्ते नजर आने लगे थे। मुझे वो मुशीबतो का पहाड़ अब सिर्फ एक छोटा सा तिनका लगने लगा, जिंदगी मे खुश रहने के लिए रास्ता चुनने की जब बारी आयी तो मैंने वो रास्ता चुना जहाँ ख़ुशी का तो पता नही लेकिन जिंदगी भी नही थी, और जब जिंदगी ही ना हो तो क्या ख़ुशी क्या गम.... जिंदगी मे ख़ुशी और गम दोनों का होना ही जिंदगी का सबूत है, हमेशा गम और और हमेशा ख़ुशी किसी की जिंदगी मे नही रहती।

क्या मेरा प्यार, मेरी मोहब्बत मे हुई उलझन मेरी मौत का कारण है, या जिंदगी मे आयी ये मुशीबत?

मैं उस लड़की से बहुत प्यार करता था, ना जाने क्या नाम होगा उसका, हाँ जो भी होगा उसी की तरह खूबसूरत सा होगा, मेरी तो जैसे मेरी सारी खुशियाँ उसमे बसती हो, हर तरफ से जिंदगी मे गम होने के बावजूद भी जब उसका चेहरा नजरों के सामने आ जाता था तो जैसे जिंदगी जन्नत सी हो जाती थी, नौकरी से परेशान था, नौकरी करता था प्राइवेट, और मालिक का बर्ताव हमारे लिए नौकरो जैसा था, खैर थे तो नौकर ही, फ्री मे थोडी काम कर रहे थे, वो पैसा देता था काम करने का, और मन मुताबित मुनाफे वाला काम ना हो ओया तो हर्जाना उसकी गालिया सुनके चुकता हो जाता था, तनख्वाह से नही काटता  था हमारे लिए ये बहुत था।  मैं ही नही दो चार और लोग थे, उन्हें तो वैसे भी आदत हो चुकी थी दस दस साल से टिके हुए थे, मुझे अभी बड़ी मुश्किल से तीसरा साल लगा था। मालिक की गली सुनते फिर उसके जाने के बाद हम चारो मजदूर उसे जमके गाली देकर बहुत सुकून महसूस करते थे, और हिसाब भी बराबर हो जाता था।  फिर कभी ऑटो से तो कभी पैदल घर की तरफ चले जाते थे, घर को आते आते बहुत सारी गलियों से गुजरते हुए शॉर्टकट  रास्ता मैं इसलिए नही अपनाता था की जल्दी घर पहुँच जाऊंगा, बल्कि इसलिए मैं उन गलियों से गुजरता था क्योंकि एक लड़की थी जो अक्सर मुझे नजर आती थी, रोज ही नजर आती थी, कभी कभी नजर ना आये तो मेरे लिए घर की तरफ को जाता हुआ रास्ता भी जैसे नाराज सा हो जाता था। मैं हर कदम को ऐसे आगे बढ़ाता  जैसे किसी भी पल वो लौट जाये बस..... कभी कभी तो मैं वापस भी लौट जाता और उसकी गली से कुछ दूर तक जाकर दोबारा लौट आता, रोज के आने जाने से कुछ लोग पहचान के बने हुए थे जो पूछ भी लेते की क्या खो गया जो दोबारा आ गया। तो मेरे पास भी दस बहाने होते थे और मैं बाकि के नौ बहाने अगले बारी के लिए बचा लेता था।

खैर उसे देखना ही मोहब्बत होगी, देखके उसकी मुस्कान देख के बस मुस्करा देना रोज क़ा काम सा हो गया, फिर घर आकर ख्याली पुलाव बनाने मे जो मजा आता था वो मेरी जिंदगी के बाकि किस्सों मे कहाँ....

वो मुस्कराई इसका मतलब वो भी कुछ सोचती होगी, क्या जिस दिन मैं छुट्टी पर रहता हूँ  वो मुझे ढूंढती होगी?, क्या मेरा इंतजार करती होगी?, सोचती तो होगी जरूर की आज वो क्यों नही आया। कभी कहीं अकेले मिलती तो मैं जरूर उससे बात करता, उसे बताता की मेरी थकी हारी जिंदगी की राहत है वो, उसे कहता की वो चाहत...... ना ना ना, अगर उसने कुछ और सोच लिया, मेरा मतलब बुरा मान के नजर आना ना छोड़ दे...., वो क्यों बुरा मानेगी, क्या पता वो इंतजार कर रही है की मैं कोई बात करूँ, वो थोडी खुद बोलेगी की वो मुझे पसंद करती है, बात तो मुझे ही आगे बढ़ानी होगी।

मैं घर आकर अकेले अकेले उसके ख्यालो मे खोये खोये ही अक्सर खुद के लिए खाना बनाता  था। किराये का एक कमरा उसी मे पूरी दुनिया बसानी  एक मज़बूरी हो जाती है, एक चारपाई, एक अलमारी और थोड़ा दूर बक्शे के ऊपर रखा गैस का चूल्हा, पास मे नीचे रखे सिलेंडर के ऊपर स्टील का परात और सिलेंडर के दोनों बाजुओं मे बेलन वगेरा ऐसे फंसा  के रखते है जैसे  सिलेंडर  सीलेंडर नही स्टेण्ड हो, एक साइड एक पानी की बाल्टी और एक साइड खाने के बर्तन, सब एक ही कमरे मे, और ये भी कम हो रहा कहने को एक रस्सी भी कमरे के एक कोने से दूसरे कोने मे बँधी हुई थी जिसमे उस दिन कपड़े सुखाए जाते थे जब बारिश होने की आशंका हो या जिस दिन मकान मालिक की बहु जल्दी कपड़े धोकर सारे छत को अपने ही घर के कपड़ो से ढक आये, उस दिन भी मेरा कपड़े सुखाने का अड्डा अंदर ही रहता था। धीरे धीरे अंदर ही कपड़े सुखाने की आदत हो गयी थी,  धूप वाले दिन भी छत मे जाने के आलस से कभी कभी इधर ही सूखा देता था।

घर आकर उस लड़की की यादो मे खोये खोये कब सारा काम हो जाता खबर नही लगती, गांव से मम्मी पापा का फोन जब आता तब लगता था की उसके अलावा भी जिंदगी मे कोई है, कोई है जो मेरी खैर खबर चाहता है, और सच बात तो यही थी की मेरा मेरे मम्मी पापा के अलावा कोई अपना नही था, हाँ साथ काम करने वाले कर्मचारी भी थोड़े बहुत अपने बन चुके थे, लेकिन वो सिर्फ काम पर पहुँचने के बाद से छुट्टी होने तक के अपने थे, उसके बाद उन्हें ये भी नही पता था की मैं जाता किधर हूँ।

मम्मी पापा घर मे मेरे सहारे बैठे थे, हाँ गाय  भी थी, जो दूध देती और दूध बेचकर थोड़ा बहुत खर्चा उनका निकल जाता, लेकिन गाय भी जब दोबारा बछड़ा  देने की तैयारी करती उस टाइम पर मुझे कुछ बढाकर पैसे भेजनें पड़ते थे, और ना भी बढ़ाये  तो भी वो लोग कुछ नही कहते थे, क्या कहना, वो तो जानते ही थे की लड़का परदेश मे कैसे कमा के खा रहा है, मेरे लिए उनका कोई दबाब कभी नही रहा, वो जब भी रोये मुझसे छिपके रोये ताकि मैं उनकी फिक्र मे ना रहूं, मम्मी कभी कभी पैसो के लिए बोल भी देती थी लेकिन मेरे शख्त पापा.... जिनसे बचपन मे मेरे पैसे मांगने की हिम्मत नही होती थी आज उनमे हिम्मत नही की मेरे से पैसो के लिए कुछ कहे.... जिंदगी मे देखो ना कैसा चक्र चलता है, बचपन की बात कहूं तो मैं माँ के आगे रोना रोया करता था, कभी कभी एक दो रुपये मांगने के लिए, मतलब जब कभी रुपयों की जरूरत होती तो पापा से मांगने की हिम्मत कभी नही आती थी, आज जब कभी एमरजेंसी मे उन लोगो को पैसे चाहिए होते थे तो माँ ही पैसो की बात सामने रखती थी, या तो पापा इसलिए नही मांगते होंगे क्योंकि मैंने कभी नही मांगे थे, या फिर वो झिझकते  होंगे, वैसे भी उनसे हालचाल के अलावा बात ही कभी कहाँ होती थी, ना ही वो मेरे से कभी मेरी सेलरी पूछते थे, मेरी दिल की बात जानने का ठेका बचपन से मम्मी ने ही ले रखा था। और माँ कहे की उसे पैसो की जरूरत है, उसे मना कैसे कोई करेगा, वो माँ जिसने जवानी मे कभी शौक नही पुरे किये, हमेशा दो वक्त की रोटी जुटाने के पीछे कमर तोड़ मेहनत की, वो अब बूढापे के टाइम पैसे मांगेगी तो राशन पानी की दिक्कत दूर करने को मांगेगी या फिर दवाई का खर्चा निकालने को मांगेगी, बनारसी साड़ी का शौक जिस उम्र मे होना चाहिए था उस उम्र मे अपनी पुरानी शादी को फाड़ के उसकी डोरी को अच्छे से गुंथ कर बकरी के बच्चों के लिए छोटी छोटी रस्सीया वो बनवा लिया करती थी, उसके शौक ना जाने क्या होंगे, आज तक नही पता  की वो क्या शौक रखती थी। कभी उसनें अपने शौक बताये ही नही इसलिए मैं उसके शौक कभी पुरे कर भी नही पाया, मैं भी उसी की तरह बस पेट भरने की सोचता रहा और अपना राशन और उनका राशन  तक अपनी जिंदगी समेट ली, खैर समेटना मज़बूरी थी, बिखर जाता तो शायद सबकुछ बहुत पहले बिखर जाता।

आज का दिन बहुत भारी रहा, पिछले एक साल से एक ही गली मे एक लड़की को लगभग पागलो की तरह चाहता था, कभी बता  नही पाया मगर जताया बहुत था, और उसके अंदाज से लगने लगा था की वो जानती है मेरे दिल की बात, मेरे दिल की बात जानने के बावजूद भी उसका मुस्कराना जताता था की उसके दिल मे भी कोई बात है, इतना सब कुछ होने के बाद भी मुझसे इतनी हिम्मत कभी नही हुई की मैं उससे बात करूँ, मेरे मन के अनेक वहम थे, मेरी छुट्टी के टाइम ही उसका अपने बालकनी मे खड़ा होना, और रोज एक ही जगह पर, और कभी कभी गली मे ही उतर कर किसी छोटे बच्चे को घुमाना, मतलब ये सब संयोग तो हो नही सकता ये सोचकर मे मन ही मन खुश रहता और सोचता था की एक ना एक दिन वो जरूर खुद ही बात कर लेगी, या फिर मैं कुछ बात करके बात आगे बढ़ाऊंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी, हर रोज हिम्मत करके घर से निकलता था, कई दफा तो पत्र भी लिखें, चिट्ठी मे अपना नंबर भी लिखा, लेकिन गली मे पकड़ाना खतरे से खाली नही था, सिर्फ वो ही थोडी होते थे, बहुत सारे लोग गलियों मे रहते थे, इसलिए तो हमारी मुलाक़ात सिर्फ मुस्कराहट तक ही सिमटी रह जाती थी। वो कुछ बोलने से झिझकती थी और मैं भी डरता था उन लोगो से, शायद अपने लिए नही उस लडकी के लिए,  और जिस तरह का मेरा काम था, मेरी नौकरी थी मैं शान शौकत से उससे इजहार भी नही कर सकता था, मेरी आधी हिम्मत तो मेरे गरीब होने की वजह से रुकी हुई थी, अगर मैंने उससे बात कर भी ली और कभी वो मेरे कमरे को देखेगी तो क्या सोचेगी, और शादी..... हिहिही इन ख़्वाबों पर किसका बस चलता, मैं तो ये भी सोचता था की शादी के लिए बात करूँगा और घर देखेंगे तो मेरे पास तो बस ये कमरा है, और इसकी हालत.... इस कमरे को देखके तो मेरा मन नही करता इसमें रहने का वो क्या रहेगी, और गाँव.... गाँव वाला कच्चा मकान..... उसका तो वो बहुत मज़ाक उड़ाएगी, देखा नही उसका घर कितना बड़ा है, उस गली मे सबसे अमीर तो वही लगती है, हो सकता है वो भी किराये मे रहती हो, उसकी सादगी, उसके संस्कार, उसके हाव भाव देखकर लगता नही वो किसी अमीर की लड़की होगी, हाँ हो सकता है की अमीर भी हो और संस्कारी भी, हर कोई इंसान एक जैसा तो नही होता ना,

खुद को उसके लिए सोचना, और फिर खुद को खुद ही नकार देना, अनकही  कहानियाँ बुनना,  कहानी मे खुद को एक किरदार रखकर एक किरदार उसे चुनना, ये सब खाने के बाद नींद आने तक का रोज का काम बन गया था मेरा, बिना कोई कहानी सोचे नींद ही नही आती थी, और कहानी मे उसे सोचना दिल का सुकून था, अक्सर कहानियो मे मैं उससे गली से दूर  किसी सुनसान सडक के किनारे बस स्टॉप पर मिलता था और किसी ऐसी बस का इंतजार करता था जो कभी नही आती थी, वहां सिर्फ वो और मैं इंतजार कर रहे होते थे और उस दौरान मैं उससे बातें करता था, या कभी कभार बस आ जाती थी और उसमे एक ही सीट होती और मैं उस सीट मे उसे बैठाकर खुद खड़ा रहकर उसके दिल जितने की कोशिश करता था,  कभी कभी मुझे देर तक नींद नही आती तो बस मे कुछ गुंडे भी बुला लेता था और उसके खातिर मैं लड़ पड़ता था, खुद की जान की परवाह किये बिना, और उसे उन सबसे बचा लेता था, और एक सबसे दिलचलस्प बात और है, जिस दिन वो मुझे गली मे मिलती और मुस्कराती नही थी उस दिन मुझे उसपर गुस्सा आता और खाने के बाद नींद से पहले वाले अंतराल मे जो कहानी चलती उसमे मैं इस बात का बदला लेता उसे इग्नोर करके, जी हाँ नजअंदाज करके उसके ना मुस्कराने का बदला ले लिया करता था, पूरी राट ये सोच के गुज़ार लेता की वो कल जब मिलेगी तो मैं उसकी तरफ देखूंगा ही नही, मैं बस नजरअंदाज करके आगे निकल जाऊंगा, लेकिन अगले दिन उसे देखकर मेरे चेहरे मे खुद मुस्कान आ जाती, उस मुस्कान को रोकना मेरे हाथ मे कभी था ही नही, वो मैं नही मेरा दिल और मेरी नजरें मुस्कराया करती थी और होंठ भी खुद मे थोडी निशानी ले ही आते।

ये रोज की कहानी थी, और जिंदगी के हर मोड़ मे नयी  कहानी  होती, सारी कहानियां बिल्कुल अलग , मकान मालिक ने पिछले कुछ महीनों से महीने का किराया बढ़ाने का  ऐलान किया था , मगर फेसिलिटी वही पुरानी, एक छोटा सा कमरा, उसी मे सब कुछ, बाथरूम चार किरायदारो का सिर्फ एक, ऐसे मे किराया बढ़ाना  गुस्सा तो दिखाएगा, इसी बात पर कई दफा झड़प उससे हो चुकी थी, और बाकि लोगो की ख़ामोशी और मेरा ही बोलना उसकी नजर मे मैं खटकने लगा था, हालांकि मेरी वजह से उन लोगो का भी किराया नही बड़ा था, मैंने बोला की एक बार रंग चुना करवा लो, और कमरे मे कीचन सेट, डलवा लो, ज्यादा नही तो गैस चूल्हा रखने के लिए एक सेल्फ ही बनवा दो, किराया बढ़ा देंगे, आज बनवा देंगे कल बनवा देंगे करके वो मेरी मांग को टालता  गया और मैं वही पुराना रेट किराया देता रहा, अब वो मेरे से बस मतलब की बात ही करता है बस, निकाल भी नही सकता, क्योंकि ऐसे छोटे घोसले मे रहने कोई नही आएगा, इसलिए भी थोड़ा वो शांत था, लेकिन मेरा एक दोस्त था जो आजकल मेरा दुशमन मालूम हो रहा था, एक बार पांच हजार उधार लिए थे उससे, दो हजार तो लौटा दिए तीन और लौटाने थे, बीस तारीख हुए थे और पगार मिलेगी अगले महीने दस बारह तारीख को, ऐसे मे चार पांच दिन का टाइम दे रखा था, चलो ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा, उसका आजकल बार बार फोन आता था और मैं उठाता नही था, क्या करूँगा उठाकर, सच भी बोलूं तो उसे बहाना ही लगता था। मेरी एक चोरी छिपे एल आईं सी की किश्त जाती रही है, और किराया सर पर हर महीने, फिर राशन बिल और गाँव का खर्चा, सब ले देके हाथ मे रह जाती ये लकीरें जिनमे गरीबी के शिवा कुछ लिखा नही था।

क्या सिर्फ यही वजह थी की मैं....क्या दोस्त से लिया ये छोटा सा कर्ज मेरी मौत का कारण बनने जा रहा था,  नही नही,  दुख तो मुझे इस बात से भी हुआ जब मैं उस दिन काम से लौट रहा था और मुझे ऐसा नजारा दिखा जिसे बर्दाश्त नही कर पाया, अभी उस लड़की की गली से मैं बहुत दूर था, ये समझ लो की दो या तीन गलिया बीच मे थी, मैं अपनी मस्ती मे आ रहा था तभी मुझे वो दिखी, आज पहली बार मुझे वो गली से दूर, गली से बाहर नजर आयी थी, लेकिन ये क्या? उसके साथ एक रॉयल एनफील्ड वाला लड़का भी खड़ा था, हाँ लड़की मेरे सामने ही उसमे से उत्तरी थी और ना जाने दोनों क्या बातें कर रहे थे, मैं उन्हें करीब पहुँचता तब तक उन्होंने एक दुसरे को बाय किया और लड़की पैदल पैदल जाने लगी, मुझे देखकर हल्की घबराहट भी शायद उसमे आ गयी थी। मैंने सोचा की ये लड़का इसे छोड़ने ही आया था तो घर तक क्यों नही..... इतनी दूर क्यों? ये घरवाली से छिपके ये सब..... मेरे तो दिमाग़ की बत्ती कुछ भी सोच पाने मे असमर्थ हो गयी, सोच बहुत कुछ रही थी मगर सब बकवास बकवास सोचे जा रही थी। आगे आगे वो जा रही थी पीछे पीछे मैं चला आ रहा था, हमारे बीच मे आज कदमो के हिसाब से बहुत नजदीकियां थी मगर उसे किसी के साथ देखने के बाद जैसे हमारी दूरिया लाख गुना बढ़  चुकी थी, मैं ये नही सोच पाया की वो उसकी निजी जिंदगी है। उस दिन के बाद मैंने अपना रास्ता बदल लिया, उसकी गली से ये सोचकर नही गुजारा ताकि उसे भी महसूस हो की मैं तब से उसे नजर नही आ रहा जब से उसको मैंने उसके साथ देख लिया, मगर उसे महसूस तो तब होगा ना जब वो मेरे बारे मे भी कुछ सोचती होगी, अब मेरी कहानियां बदल चुकी थी, मैं हारा अब भी नही था, ना सपने सजाने से बाज आया था, अब मेरे दिमाग़ मे बेवफाई वाले किस्से आते थे, सोने से पहले रोज नही कहानी बुनता था जिसमे वो मेरे प्यार को ठुकराकर किसी और के साथ चली तो जाती है लेकिन जिसके साथ जाती है वो उसे धोखा दे देता है, और मेरा सच्चा प्यार उसे तब भी अपना लेता है, कभी कभी ये तक सोच लेता की वो उस बुलेट वाले के साथ भाग कर शादी करने के लिए घर से भाग जाती है लेकिन वो लड़का आता ही नही, और लड़की घर वापस भी नही आ सकती बहुत लम्बा चौड़ा ख़त छोडके गयी है घरवालों के नाम पर, ऐसे वक्त मैं मैंने उसे सहारा दिया, उसे इस गरीबखाने मे तब तक जगह दी जब तक उसे उसकी परेशानी का हल ना मिल गया हो, मैं खाना बहुत अच्छा बनाता, हम दोनों खाते थे, फिर मैं किसी फ़िल्मी हीरो की तरह उसे सुरक्षित महसूस कराने के लिए कमरे मे सोने को कहकर खुद रात भर छत मे सो जाता था। इस तरह धीरे धीरे वो मेरे प्यार मे पड़ गयी और एक दिन हमने शादी कर ली। ये सब उम्मीदें और कहानियाँ ही मुझे अवसाद मे खींचे जा रही थी मुझे पता भी नही चल रहा था। एक ऐसी लड़की को मैं बेवफा बोल रहा था जिससे कभी प्यार और वफ़ा की बात ही नही हुई, दोस्ती तलक नही हुई, अजनबियों की तरह भी कोई बात नही हुई, साथ जीने मरने की कसम तो बहुत दूर की बात थी, वो लड़की कैसे बेवफा हो सकती है जिसने ना कोई वादा किया ना ही तोड़ा, वादा किया ही नही तो भला तोड़ते कैसे?

एक तरफ ये लड़की थी जो दिमाग़ से जा नही रही थी, दूसरी तरफ  उधारीलाल दोस्त अपने दोस्तों के साथ कई बार रास्ते मे मुझे घसीट चुका था, और मेरा मोबाइल उसनें जब्त कर लिया, सिम कार्ड मेरे सामने ही मेरी तरफ फेंक गया और उधार माफ़ कर गया, एक घंटे तक ढूंढने के बाद मुझे वो सिम मिला जिसमे मेरे माँ पापा के फ़ोन आते थे। वो नंबर वही था जिसमे अब कुछ नही आ पायेगा, और मालिक की वो धमकिया.... जिन्हे पहले मैं बर्दाश्त कर लिया करता था, सुनकर नजरअंदाज कर लेता था मगर अब वो सब चुभती थी मुझे, मुझे अब कुछ भी अच्छा नही लगता था। सहकर्मी के फ़ोन से छिप छिप के घरवालों को एक फोन कर देता था कभी कभी, बता दिया था की फ़ोन ख़राब हो गया आप लोग टेंशन मत लेना, मैं कर लिया करूँगा फोन कभी कभी, रोज ना सही दो तीन दिन मे तो कर ही लूंगा। क्या करता एकदम से नया मोबाइल भी कैसे खरीदता।

मेरा मन उदास रहने लगा था, ख़ुशी जैसे मेरी जिंदगी से कोसो दूर चली गयी थी, हर वक्त मैं जैसे कहीं खोया सा रहता था, कभी कभी मन ही नही करता था सुबह काम पर जाने का तो मैं सुबह बिस्तर पर पड़ा रहता था, बिना कोई बाहरी नशा किये भी मैं नशे मे रहता था, इसी चक्कर मे शायद मेरे से काम भी ठीक से नही हो पा रहा था। एक तरफ काम ठीक से नही करता दूसरी तरफ जब मन किया छुट्टी कर ली, ये सब देखते हुए काम से निकाल दिया गया।

अब मेरे पास था क्या? जिंदगी मे कुछ नही नजर आया, कोशिश ही नही की कोई और काम ढूंढने की, किसी से इतनी जान पहचान नही थी की कहीं काम के लिए बात करूँ, या उन लोगो से कहूं की कही मेरे लायक कोई काम हो तो बताना। बस कमरे मे बैठे बैठे दीवारों से अपना दर्द बांटता था, मकान मालिक के समझ भी आने लग गया की मेरा काम छूट गया, और जहाँ से काम छूटा उसे खुद के किराये की टेंशन सताने लग जाएगी, मैं क्या खाऊंगा, क्या करूँगा, मेरी रोजमर्रा की जरूरते कैसे पूरी होंगी इन सबमे मकान मालिक का ध्यान थोडी जायेगा,

मेरा पास आगे मेरा कोई फ्यूचर बाकि नही था, ना ज्यादा पढ़ा  लिखा था की कहीं भी एडजस्ट हो जाऊं, पढ़ाई की उम्र मे जब घर से निकल के आ गया था तो मुझे ये चंद  पैसो की नौकरी अच्छी लगी थी, मेरी उम्र के बच्चे पढ़ाई मे पैसा खर्च कर रहे थे और उनके घरवाले मे घरवालों को कहते की तुम्हारा लड़का बड़ा अच्छा है, देखो चार पैसे लेकर आ रहा, एक हमारे बच्चे है जितने पैसे लगाओ कम है, तब ये बातें मुझे भी अच्छी लगती थी, मैं सोचता था की पढ़ लिखके भी लोग नौकरी ही करते है, मेरे साथ काम करने वाले कुछ लोग ग्रेजुएट थे और मैं दसवीं पास, गयारहवीं भी गया था दो तीन महीने फिर स्कूल छोड़ दिया, लेकिन जहाँ काम कर रहा था वहां ग्रेजुएट और दसवीं को बराबर काम करते देख मुझे ये सारी डिग्री फालतू और इन डिग्रीयों के पीछे भागते लोग अवारा लगने लगे। मगर अब एहसास होने लगा था की पढ़ाई लिखाई एक तरह की आवारगी भी थी तो बहुत अच्छी आवारागी  थी, बहुत सारी डिग्रियां लेने के बाद तुम्हे अपने पसंद का काम चुनने की आजादी तो होती है, मेरे जैसे अनपढ़ के पास अगर कोई ऐसी नौकरी आ भी जाये जिसे करने मे मैं कुशल हूँ, बहुत अच्छे से करता हूँ, तब भी मुझे वो काम करने की आजादी नही होगी सिर्फ इसलिए क्योंकि मेरे पास डिग्री नही है,

लेकिन क्या मैं नौकरी की वजह से मर रहा था, नही नही.....

तो क्यों?

क्या मेरे मरने की वजह मेरे मोबाइल को लूटा जाना था, या उस लड़की का किसी और लड़के के साथ पकड़ा जाना। या फिर नौकरी का छूटना..... या कोई और कारण था।

शायद और भी कुछ कारण रहे होंगे, इतनी सी बात के लिए थोडी मैंने कमरे के अंदर बँधी उस कपड़े टांगने वाली रस्सी को खोलकर पंखा बाँधने वाले सरिये पर उसे बांधा, मेरे कमरे मे पंखा तो नही था लेकिन भविष्य मे पंखा लगाने के लिए उधर एक सरिये की चूड़ी  सी बनाकर जरुर रखी थी, जिसपर मैं इस झूल रहा हूँ अब मेरे हाथ गले ई तरफ नही बल्कि मेरे शरीर के समांतर हो चुके थे, बिल्कुल ढीले, दर्द सब जैसे मुझसे जुदा हो चुका था, चारो तरफ खामोशी थी, दिमाग़ अब भी यही सोच रहा था की क्या कोई और रास्ता नही था, दिमाग़ अब भी तलाश कर रहा था की क्या रही असली वजह, ऐसा क्यों किया। उस लड़की को भूल जाता, कोई और अच्छे काम की तलाश मे ठोकरे खाता, तो शायद किस्मत मुझे किसी दुसरे मोड़ पर ले जाती और हो सकता था की मेरी आगे की जिंदगी अच्छी हो जाती। लेकिन करता क्या? क्या ही कर लेता, चार बर्तन दो बिस्तर और चूल्हा सिलेंडर लेकर कहाँ भटकता फिरता, जेब मे पैसे भी नही थे। बिना पैसे के तो मैं बस सारा सामान कमरे से खाली करके गली मे ही रख सकता था, उसके बाद आगे जाने के लिए सारे रास्ते मुझसे यही सवाल करते की- "कितने पैसे दोगे?"

"मेरे पास कुछ नही है " मेरा ऐसा जवाब सुनकर कोई पलट के सवाल भी नही करता। और फिर मैं....... हम्म्म्म...... सब साफ है...... मेरे पास दो ही रास्ते थे, मौत से भी बत्तर  जिंदगी...... और जिंदगी से बेहतर मौत...... और मैंने चुना ये खामोश रास्ता, जो बहुत चीखने चिल्लाने के बाद खामोश हुआ, वो भी हमेशा हमेशा के लिए.........

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6 Comments

Anjali korde

15-Sep-2023 12:06 PM

Nice

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Babita patel

15-Sep-2023 10:25 AM

Nice

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hema mohril

13-Sep-2023 08:39 PM

Amazing

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